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बीए सेमेस्टर-2 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2721
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 मनोविज्ञान - सरब प्रश्नोत्तर

प्रश्न- मापनी से आपका क्या तात्पर्य है? मापनी की प्रमुख विधियों का उल्लेख कीजिये।

अथवा
किन्हीं दो मापन विधियों का वर्णन कीजिये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. श्रेणी मूल्यांकन पर टिप्पणी लिखिये।
2. युग्मित तुलना पद्धति का वर्णन कीजिये।
3. मापनियों से आप क्या समझते हैं?
4. क्रमांक विधि पर टिप्पणी लिखिए।
5. पदांकन मापनी क्या है?--.
6. पदांक विधि का वर्णन कीजिये।
7. पदांक मापनी से आप क्या समझते हैं?
8. युग्मित तुलना विधि की व्याख्या कीजिये।
9. मनोवैज्ञानिक प्रदत्तों से संकलन की विधियाँ बताइये।

उत्तर -

मापनी का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Scale)

मापनी एक प्रकार का साधन होता है जिसके द्वारा वातावरण में स्थित विभिन्न वस्तुओं का मापन किया जाता है। उदाहरणार्थ - लम्बाई एवं चौड़ाई के मापन के लिए मीटर स्केल, द्रव के मापन हेतु लीटर स्केल या वजन के मापन हेतु किलो स्केल आदि। इन मापनियों के माध्यम से भौतिक पदार्थों का मापन शुद्ध और वैज्ञानिक ढंग से किया जाता है। इन्हीं भौतिक मापनियों की भांति मनोवैज्ञानिक मापनियाँ भी होती हैं जिनकी सहायता से सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक घटनाओं तथा उनसे जुड़े तथ्यों का मापन किया जाता है। मापनी के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न विचार व्यक्त किये हैं उनमें से कुछ प्रमुख विचार निम्नलिखित हैं-

English and English (1980) - "एक मापनी वह युक्ति है जिससे उद्दीपक वस्तु की तुलना एक प्रामाणिक सेट (जिसमें कुछ नियमों के अनुसार अंक होते हैं) से करके अंक या गणितीय मूल्य दिये जाते हैं, जो उद्दीपक वस्तु के परिमाण का प्रतिनिधित्व करते हैं।

Lindman (1971) - इस प्रक्रिया के द्वारा कुछ निर्दिष्ट नियमों के अनुसार, व्यक्तियों अथवा वस्तुओं के किसी समुच्चय पर संख्या का कोई समुच्चय आरोपित किया जा सकता है। संख्याओं का समुच्चय मापन की विशेषताओं के स्वरूप और मानक उपकरण के प्रकार पर निर्भर करता है जबकि व्यक्तियों तथा वस्तुओं का समुच्चय मापन के उद्देश्य पर निर्भर करता है।".

S.S. Stevens (1951) - "व्यापक रूप से मापन का तात्पर्य वस्तुओं एवं घटनाओं के नियमानुसार संख्या प्रदान करना है।"

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि कुछ परिस्थितियों. में व्यक्ति की उद्दीपकों के प्रति की गयी प्रतिक्रियाओं का एक निश्चित सातत्य (Continuum) पर अध्ययन किया जाता है। जिस प्रकार की मापन युक्ति (Measuring device) पर ऐसी अनुक्रियाओं का अंकन किया जाता है, वह मापनी कहलाती है। इस मापनी में कुछ मूल्य अंकित होते हैं। इन मूल्यों के साथ उद्दीपक की तुलना करके उसके परिमाण (मात्रा और आकार) का अंकों के रूप में निर्धारण किया जाता है। इस मनोवैज्ञानिक मापनियों में भौतिक मापनियों की तरह निरपेक्ष शून्य बिन्दु (Absolute zero point) नहीं होता है इसलिये व्यक्ति की उद्दीपकों के प्रति अनुक्रियाओं का मापन एक सातत्य पर किया जाता है। यद्यपि इनका मापन अंकों के आधार पर ही किया जाता है फिर भी यह शुद्धतम मापन नहीं कहा जा सकता है।

ये मापनियाँ मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार की होती हैं -

1. कोटि निर्धारण विधि या पदांक विधि (Rank Order Method) - इस विधि में प्रयोज्यों से विभिन्न उद्दीपकों को एक निश्चित क्रम में लगाने को कहा जाता है जिन्हें वह सर्वाधिक पसन्द से सबसे कम पसन्द के क्रम में लगाता है। पदांकों के शुद्ध मान ज्ञात करने के लिए एक ही प्रयोज्य से उद्दीपकों को पदांक दिलवाए जाते हैं तथा कई प्रयोज्यों से भी उद्दीपकों को पदांक दिलवाए जाते हैं तथा उन सभी पदांकों का योग करके उनका औसत निकाला जाता है तत्पश्चात् औसत अंकों को क्रम से लगाकर उन्हें क्रम दिया जाता है। यह विधि उन उद्दीपकों के निर्णय के लिए एक उपयोगी विधि है जो उद्दीपक व्यक्ति के चारों ओर के वातावरण से सम्बन्धित हैं। इस विधि के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उद्दीपक भौतिक रूप से उपस्थित हों। इस विधि का प्रयोग तभी उपयुक्त होता है जब उद्दीपकों की संख्या कम हो। इस विधि में एक स्केल का प्रयोग किया जाता है। यह विधि अधिकतम 20 उद्दीपकों तक के क्रम का निर्धारण के लिए ही अधिक उपयुक्त मानी जाती है। उससे अधिक उद्दीपक होने पर आंकलन त्रुटिपूर्ण होने की सम्भावना बनी रहती है।

भिन्न-भिन्न विद्वानों ने कोटि निर्धारण विधि की निम्नलिखित परिभाषायें दी हैं.-

वुडवर्ड एवं श्लासबर्ग (Woodworth and Schlosberg, 1954) -  प्रयोज्य इसमें दिये गये उद्दीपकों को दिये हुए आयाम की एक क्रमिक श्रृंखला में व्यवस्थित करता है अतः एक पदांक क्रम प्राप्त हो जाता है फिर दिए हुए उद्दीपकों को कई प्रयोज्यों से क्रमिक श्रृंखला में व्यवस्थित कराया जाता है तथा प्रत्येक उद्दीपक के मध्यमान पदांक की गणना की जाती है।

बी.एस. एण्ड्रियाज  (B.S. Andreas, 1968) - "इस विधि में निर्णय लिए जा रहे आयाम के सन्दर्भ में पदों को एक विशेष क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। इस प्रकार से प्राप्त आँकड़ों का सरल विश्लेषण भी कर सकते हैं और विस्तार से विश्लेषण करने के बाद एक सूक्ष्म मापनी भी स्थापित की जा सकती है।"

2. युग्म तुलना विधि (Paired Comparsion Method) - युग्म तुलना विधि में सभी उद्दीपकों के साथ युग्म बनाकर प्रस्तुत किये जाते हैं तथा प्रयोज्यों से प्रत्येक युग्म से एक उद्दीपक को लेकर अन्य से तुलना करके, श्रेष्ठ पसन्द, अधिक पसन्द या बेहतर कहने के लिए कहा जाता है। इस विधि में प्रायः प्रयोज्य के समक्ष दो उद्दीपक एक साथ प्रस्तुत किये जाते हैं। इस विधि में सभी उद्दीपक एक ही प्रकृति के होते हैं। जैसे- कालेज में रुचि के आधार पर विषयों का चयन करना। युग्म तुलना विधि के सम्बन्ध में विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषायें दी हैं -

एच.जे. आइजनेक एवं अन्य (H. J. Kysenck at al, 1972) -"यह वह विधि है जिसके किसी आयाम पर उद्दीपक श्रृंखला को पदांक दिये जाते हैं, उद्दीपक पदों का प्रयोज्य के सामने प्रस्तुतीकरण उद्दीपक पदों के सम्भावित युग्मों के रूप में होता है और प्रयोज्य इन युग्मों की तुलना एक निश्चित चर के सम्बन्ध में करता है।"

जे. पी. गिल्फोर्ड (J. P. Guilford, 1954) - "सामान्यतः इस विधि का उपयोग उस समय किया जाता है जबकि उद्दीपकों को युग्मों में समकालीन या क्रमागत रूप में, प्रस्तुत किया जाता है।"

बी. पी. अण्डरवुड (B. P. Underwood) - "युग्म तुलना विधि वह विधि है जिसके द्वारा विभेदीकरण प्रक्रियाओं का अध्ययन एक निश्चित आयाम पर उद्दीपकों को एक सेट के अनुसार दूसरे प्रत्येक उद्दीपक से तुलना करके किया जाता है।"

इस विधि का उस समय उपयोग उचित होता है जब उद्दीपकों की संख्या अधिक नहीं होती है, क्योंकि अधिक उद्दीपकों की संख्या में इस विधि से आंकड़ों को एकत्रित करने और उनका विश्लेषण करने में कठिनाई हो सकती है। यह विधि जटिल एवं सरल दोनों प्रकार के उद्दीपकों के लिए उपयुक्त है। इस. विधि में प्रयोज्यों के समक्ष उद्दीपकों के जोड़े प्रस्तुत किए जाते हैं तथा उनसे उनकी पसन्द सम्बन्धी निर्णय पूछा जाता है। इस विधि में प्रत्येक उद्दीपक को दूसरे उद्दीपक के साथ युग्म बनाकर प्रयोज्य के सामने प्रस्तुत किया जाता है। पहले इसके द्वारा उन्हीं उद्दीपकों को अध्ययन किया जा सकता था, जिन्हें भौतिक रूप से देख पाना सम्भव हो, परन्तु वर्तमान में यह विधि सभी प्रकार के उद्दीपकों के लिये उपयुक्त है।

3. श्रेणी मूल्यांकन विधि (Rating Scale Method) - श्रेणी मूल्यांकन मापनियों का उपयोग अनेक प्रकार के व्यक्तित्व गुणों के मापन और अध्ययन के लिए किया जाता है। इसके सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं जिनमें से कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं -

एच. जे. आइजनेक (H.J. Eyseneck, 1972) - "श्रेणी मूल्यांकन मापनी वह बहुस्तर वाली मापनी है जिस पर श्रेणी मूल्यांकन करने वाला व्यक्ति एक विशेषता के अंशों को आत्मसात रूप में व्यवस्थित करता है। बहुधा इस प्रकार की मापनियों में पाँच, छः या सात अवस्थायें होती हैं जो प्रयोज्य को मौखिक रूप से बताई जाती हैं अथवा लिखित रूप में होती हैं। 

वाल पालेन (Wan Pallen, 1954) - "श्रेणी मूल्यांकन मापनी एक चर की आवृत्ति गहनता और अंशों को नियन्त्रित करती है।""

गिल्फोर्ड (Guilford, 1954) - "वे सभी रेटिंग विधियाँ जिनमें वर्ग निर्णय होते हैं, सैद्धान्तिक रूप से नियमित विधियों के अन्तर्गत आती हैं।

इसके अतिरिक्त फ्रीमैन (1971) ने श्रेणी मूल्यांकन विधि की निम्नलिखित विशेषतायें बताई हैं-

(i) श्रेणी मूल्यांकन के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक प्रयोज्य को प्रत्येक शीलगुण स्पष्ट रूप से ज्ञात हो।

(ii) मापनी के प्रत्येक अन्तराल प्रयोज्यों को शीलगुणों की भांति ही स्पष्ट होने चाहिये।

(iii) श्रेणी मूल्यांकन की विश्वसनीयता प्रयोज्यों के विचलन विस्तार (Variation) पर निर्भर होती है।

(iv) कुछ ही वैधता कसौटी ऐसी हैं जिनमे श्रेणी मूल्यांकन की वैधता का निर्धारण किया जा सकता है। अतः उसकी वैधता इसके वास्तविक उपयोग के समय प्रयोज्यों के निर्णय के आधार पर कल्पित. कर ली जाती है।

(v) प्रत्यक्ष शीलगुणों का श्रेणी मूल्यांकन अप्रत्यक्ष शीलगुणों की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय रूप में किया जा सकता है।

(vi) शीलगुणों के अनुमान की विश्वसनीयता पर शीलगुण की वांछनीयता और अवांछनीयता का प्रभाव पड़ता है।

4. शब्द साहचर्य विधि (Word Association Method) - इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग गाल्टन (Galtan) ने 1879 में किया। इस विधि के प्रयोग में विल्हेल्म वुण्ट, गाल्टन के सहयोगी थे। गाल्टन ने 75 शब्दों की एक सूची बनाई एवं उसका प्रयोग स्वयं पर ही किया। उसने पाया कि साहचर्य शब्दों के स्मरण से कुछ मानसिक चित्र एवं प्रतिमायें मस्तिष्क में अंकित हो जाती हैं। इन चित्रों एवं प्रतिमाओं की संख्या तथा उनकी स्पष्टता साहचर्य की शक्ति पर निर्भर थी। इसके पश्चात् युंग (Young), ने इस विधि के प्रयोग के लिए 100 शब्दों की एक सूची तैयार की। युंग का मुख्य उद्देश्य संवेगात्मक ग्रन्थियों का पता लगाना था। युंग ने प्रतिक्रिया शब्दों को निम्नांकित श्रेणियों में विभाजित किया --

(i) अहंकेन्द्रित (Ego centric),
(ii) वर्गोपरि (Super ordinates),
(iii) विरोधी शब्द (Opposite words),
(iv) अन्य (Miscellaneous), तथा
(v) वाचन स्वभाव (Speech habit)।

युंग के पश्चात् इस विधि का प्रयोग केन्ट, रोनासोफ, रैपापोर्ट तथा ओरबीसीन आदि मनोवैज्ञानिकों ने किया। वर्तमान युग में शब्द साहचर्य विधि की अनेक विधियाँ प्रचलित हैं परन्तु उनकी आन्तरिक प्रकृति में कोई विशेष अन्तर नहीं है, जो कुछ भी अन्तर है वह निर्माण प्रक्रिया में है।

5. वाक्य पूर्ति परीक्षण (Sentence Completion Test) - वाक्य पूर्ति विधि का प्रयोग सर्वप्रथम पालेन (Pallen) तथा रेण्डलर (Rayndler, 1930) ने किया। इसके पश्चात् व्हीलर (Wheeler) कैमरोन, लार्ज, थार्नडाइक, एसेनफोर्ड अदि ने भी इस परीक्षण के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। इस विधि में प्रयोज्यों को अपूर्ण वाक्यों की एक सूची प्रदान की जाती है तथा उन्हें एक निर्धारित समय में उन वाक्यों को पूरा करना होता है। इसमें यह माना जाता है कि वाक्य पूर्ति में परीक्षार्थी उन्हीं शब्दों का प्रयोग करता है जो उसकी इच्छा, भय, महत्वाकांक्षा, दमित संवेग आदि को व्यक्त करते हैं। इसमें अभिव्यक्ति प्रभावित उद्दीपक के निर्वचन पर निर्भर होती है। इस प्रकार यह परीक्षण व्यक्तित्व गुणों का बोध कराता है। इस विधि की विश्वसनीयता 0.83 के लगभग मापी गई है जो इसकी उच्च विश्वसनीयता की द्योतक है।

 

6. खेल एवं ड्रामा विधि (Play and Drama Method) - खेल एवं ड्रामा विधि का प्रयोग व्यक्तित्व मापन के लिए किया जाता है। यह माना जाता है कि इसमें प्रयोज्य अपनी भावनाओं का स्वतन्त्र प्रदर्शन कर सकता है। इसका नैदानिक महत्व परीक्षक या पर्यवेक्षक की दक्षता तथा परीक्षार्थी की भावना प्रदर्शन कला के विश्लेषण पर निर्भर होता है। इसके विश्लेषण के समय वे सभी कथानक शामिल किये जाते हैं जिनका परीक्षार्थी खेलते समय उच्चारण करता है। इस विधि के जन्मदाता प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जे. एल. मोरेनो (J.I. Moreno) थे। उन्होंने अपने प्रयोग वियना में किये थे। इस विधि में एक मानसिक रोगी को किसी नाटक में नायक की भूमिका दी जाती है। पर्यवेक्षक प्रयोज्य को दृश्य का सुझाव देता है। ये सुझाव उसकी भावनाओं एवं संवेगों से सम्बन्धित होते हैं। रोगी की सहायता के लिए दृश्य में अन्य व्यक्ति भी होते हैं परन्तु उनकी भूमिका केवल सहायक की ही होती है। इस प्रकार, इस विधि में रोगी नाटक करते समय अपनी इच्छाओं एवं संवेगों को प्रदर्शित करता है तथा अपनी समस्या को व्यक्त करता है। इस विधि की विश्वसनीयता एवं वैधता को ज्ञात करने के लिए विशेष प्रयास नहीं किये गये। यह विधि एक खर्चीली, तथा अधिक श्रम एवं समय लेने वाली विधि है।

7. वर्णन गति विधि (Expressive Movement Method) - आलपोर्ट तथा वर्नन ने अपने अध्ययनों से यह पूर्णतः स्पष्ट कर दिया है कि मनुष्य के ढंग, प्रतिरूप, मुखाकृति आदि उसके विचारों तथा व्यक्तित्व के प्रतिनिधि होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने मस्तिष्क में अपनी विचारधारायें बना लेता है जिसके आधार पर वह अनेक व्यक्तियों को अलग-अलग श्रेणी में विभाजित करता है। इन विचारधाराओं को वह कई प्रकार से व्यक्त करता है। उसके भावों की अभिव्यक्ति उसके व्यक्तित्व एवं विचारों को व्यक्त करती है। यह विधि अभी पूर्ण रूप से वैध, विश्वसनीय तथा प्रायोगिक विधि के रूप में स्वीकार नहीं की गयी है तथा इस विधि के प्रयोग के लिए कई सहायकों की भी आवश्यकता होती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मापन के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  2. प्रश्न- मापनी से आपका क्या तात्पर्य है? मापनी की प्रमुख विधियों का उल्लेख कीजिये।
  3. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक मापन के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिये।
  4. प्रश्न- मापन का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए इसकी प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए।'
  5. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक मापन को स्पष्ट करते हुए मापन के गुणों का उल्लेख कीजिए तथा मनोवैज्ञानिक मापन एवं भौतिक मापन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक मापन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- मापन की जीवन में नितान्त आवश्यकता है, इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  8. प्रश्न- मापन के महत्व पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
  9. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  10. उत्तरमाला
  11. प्रश्न- मनोविज्ञान को विज्ञान के रूप में कैसे परिभाषित कर सकते है? स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- प्रायोगिक विधि को परिभाषित कीजिए तथा इसके सोपानों का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? सह-सम्बन्ध के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- अवलोकन किसे कहते हैं? अवलोकन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा अवलोकन पद्धति की विशेषताएँ बताइए।
  15. प्रश्न- अवलोकन के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  16. प्रश्न- चरों के प्रकार तथा चरों के रूपों का आपस में सम्बन्ध बताते हुए चरों के नियंत्रण पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
  18. प्रश्न- जनसंख्या की परिभाषा दीजिए। इसके प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  19. प्रश्न- वैज्ञानिक प्रतिदर्श की विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- सह-सम्बन्ध गुणांक के निर्धारक बताइये तथा इसका महत्व बताइये।
  21. प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
  22. प्रश्न- अवलोकन का महत्व बताइए।
  23. प्रश्न- पक्षपात पूर्ण प्रतिदर्श क्या है? इसके क्या कारण होते हैं?
  24. प्रश्न- प्रतिदर्श या प्रतिचयन के उद्देश्य बताइये।
  25. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  26. उत्तरमाला
  27. प्रश्न- वर्णनात्मक सांख्यिकीय से आप क्या समझते हैं? इस विधि का व्यवहारिक जीवन में क्या महत्व है? समझाइए।
  28. प्रश्न- मध्यमान से आप क्या समझते हैं? इसके गुण-दोषों तथा उपयोग की विवेचना कीजिये।
  29. प्रश्न- मध्यांक की परिभाषा दीजिये। इसके गुण-दोषों की विवेचना कीजिये।
  30. प्रश्न- बहुलांक से आप क्या समझते हैं? इसके गुण-दोष तथा उपयोग की विवेचना करें।
  31. प्रश्न- चतुर्थांक विचलन से आप क्या समझते हैं? इसके गुण-दोषों की व्याख्या करें।
  32. प्रश्न- मानक विचलन से आप क्या समझते है? मानक विचलन की गणना के सोपान बताइए।
  33. प्रश्न- रेखाचित्र के अर्थ को स्पष्ट करते हुए उसके महत्व, सीमाएँ एवं विशेषताओं का भी उल्लेख कीजिए।
  34. प्रश्न- आवृत्ति बहुभुज के अर्थ को स्पष्ट करते हुए रेखाचित्र की सहायता से इसके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- संचयी प्रतिशत वक्र या तोरण किसे कहते हैं? इससे क्या लाभ है? उदाहरण की सहायता से इसकी पद रचना समझाइए।
  36. प्रश्न- केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप से क्या समझते हैं?
  37. प्रश्न- केन्द्रीय प्रवृत्ति के उद्देश्य बताइए।
  38. प्रश्न- मध्यांक की गणना कीजिए।
  39. प्रश्न- मध्यांक की गणना कीजिए।
  40. प्रश्न- विचलनशीलता का अर्थ बताइए।
  41. प्रश्न- प्रसार से आप क्या समझते हैं?
  42. प्रश्न- प्रसरण से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- विचलन गुणांक की संक्षिप्त व्याख्या करें।
  44. प्रश्न- आवृत्ति बहुभुज और स्तम्भाकृति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- तोरण वक्र और संचयी आवृत्ति वक्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  46. प्रश्न- स्तम्भाकृति (Histogram) और स्तम्भ रेखाचित्र (Bar Diagram) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- स्तम्भ रेखाचित्र (Bar Diagram) किसे कहते हैं?
  48. प्रश्न- निम्नलिखित व्यवस्थित प्राप्तांकों के मध्यांक की गणना कीजिए।
  49. प्रश्न- निम्नलिखित व्यवस्थित प्राप्तांकों के बहुलांक की गणना कीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित व्यवस्थित प्राप्तांकों के मध्यमान की गणना कीजिए।
  51. प्रश्न- निम्न आँकड़ों से माध्यिका ज्ञात कीजिए :
  52. प्रश्न- निम्नलिखित आँकड़ों का मध्यमान ज्ञात कीजिए :
  53. प्रश्न- अग्रलिखित आँकड़ों से मध्यमान ज्ञात कीजिए।
  54. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  55. उत्तरमाला
  56. प्रश्न- सामान्य संभावना वक्र से क्या समझते हैं? इसके स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  57. प्रश्न- कुकुदता से आप क्या समझते हैं? यह वैषम्य से कैसे भिन्न है?
  58. प्रश्न- सामान्य संभावना वक्र के उपयोग बताइये।
  59. प्रश्न- एक प्रसामान्य वितरण का मध्यमान 16 है तथा मानक विचलन 4 है। यह बताइये कि मध्य 75% केसेज किन सीमाओं के मध्य होंगे?
  60. प्रश्न- किसी वितरण से सम्बन्धित सूचनायें निम्नलिखित हैं :-माध्य = 11.35, प्रमाप विचलन = 3.03, N = 120 । वितरण में प्रसामान्यता की कल्पना करते हुए बताइये कि प्रप्तांक 9 तथा 17 के बीच कितने प्रतिशत केसेज पड़ते हैं?-
  61. प्रश्न- 'टी' परीक्षण क्या है? इसका प्रयोग हम क्यों करते हैं?
  62. प्रश्न- निम्नलिखित समूहों के आँकड़ों से टी-टेस्ट की गणना कीजिए और बताइये कि परिणाम अमान्य परिकल्पना का खण्डन करते हैं या नहीं -
  63. प्रश्न- सामान्य संभाव्यता वक्र की विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
  64. प्रश्न- एक वितरण का मध्यमान 40 तथा SD 3.42 है। गणना के आधार पर बताइये कि 42 से 46 प्राप्तांक वाले विद्यार्थी कितने प्रतिशत होंगे?
  65. प्रश्न- प्रायिकता के प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  66. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  67. उत्तरमाला
  68. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? सह-सम्बन्ध के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की गणना विधियों का वर्णन कीजिए। कोटि अंतर विधि का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- सह-सम्बन्ध गुणांक गणना की प्रोडक्ट मोमेन्ट विधियों का वर्णन कीजिए। कल्पित मध्यमान विधि का उदाहरण देकर वर्णन कीजिए।
  71. प्रश्न- उदाहरण की सहायता से वास्तविक मध्यमान विधि की व्याख्या कीजिए।
  72. प्रश्न- काई वर्ग परीक्षण किसे कहते हैं?
  73. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की दिशाएँ बताइये।
  74. प्रश्न- सह-सम्बन्ध गुणांक के निर्धारक बताइये तथा इसका महत्व बताइये।
  75. प्रश्न- जब ED2 = 36 है तथा N = 10 है तो स्पीयरमैन कोटि अंतर विधि से सह-सम्बन्ध निकालिये।
  76. प्रश्न- सह सम्बन्ध गुणांक का अर्थ क्या है?
  77. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  78. उत्तरमाला
  79. प्रश्न- परीक्षण से आप क्या समझते हैं? परीक्षण की विशेषताओं एवं प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- परीक्षण रचना के सामान्य सिद्धान्तों, विशेषताओं तथा चरणों का वर्णन कीजिये।
  81. प्रश्न- किसी परीक्षण की विश्वसनीयता से आप क्या समझते हैं? विश्वसनीयता ज्ञात करने की विधियों का वर्णन कीजिये।
  82. प्रश्न- किसी परीक्षण की वैधता से आप क्या समझते हैं? वैधता ज्ञात करने की विधियों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- पद विश्लेषण से आप क्या समझते हैं? पद विश्लेषण के क्या उद्देश्य हैं? इसकी प्रक्रिया पर प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- किसी परीक्षण की विश्वसनीयता किन रूपों में मापी जाती है? विश्वसनीयता को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिये।
  85. प्रश्न- "किसी कसौटी के साथ परीक्षण का सहसम्बन्ध ही वैधता है।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- मानकीकरण से आप क्या समझते हैं? इनकी क्या विशेषतायें हैं? मानकीकरण की प्रक्रिया विधि की विवेचना कीजिये।
  87. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक मापन एवं मनोवैज्ञानिक परीक्षण में अन्तर बताइए।
  88. प्रश्न- परीक्षण फलांकों (Test Scores) की व्याख्या से क्या तात्पर्य है?
  89. प्रश्न- परीक्षण के प्रकार बताइये।
  90. प्रश्न- पद विश्लेषण की समस्याएँ बताइये।
  91. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  92. उत्तरमाला
  93. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ को स्पष्ट करते हुए बुद्धि के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  94. प्रश्न- बिने-साइमन बुद्धि परीक्षण का सविस्तार वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- वेक्सलर बुद्धि मापनी का सविस्तार वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- वेक्सलर द्वारा निर्मित बच्चों की बुद्धि मापने के लिए किन-किन मापनियों का निर्माण किया गया है? व्याख्या कीजिए।
  97. प्रश्न- कैटेल द्वारा प्रतिपादित सांस्कृतिक मुक्त परीक्षण की व्याख्या कीजिए।
  98. प्रश्न- आयु- मापदण्ड (Age Scale) एवं बिन्दु - मापदण्ड (Point Scale) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- बुद्धि लब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है?
  100. प्रश्न- बुद्धि और अभिक्षमता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- वेक्सलर मापनियों के नैदानिक उपयोग की व्याख्या कीजिए।
  102. प्रश्न- वेक्सलर मापनी की मूल्यांकित व्याख्या कीजिए।
  103. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  104. उत्तरमाला
  105. प्रश्न- व्यक्तिगत आविष्कारिका क्या है? कैटेल द्वारा प्रतिपादित सोलह ( 16 P. F) व्यक्तित्व-कारक प्रश्नावली व्यक्तित्व मापन में किस प्रकार सहायक है?
  106. प्रश्न- प्रक्षेपण विधियाँ क्या हैं? यह किस प्रकार व्यक्तित्व माप में सहायक हैं?
  107. प्रश्न- प्रेक्षणात्मक विधियाँ (Observational methods) किसे कहते हैं?
  108. प्रश्न- व्यक्तित्व मापन में किन-किन विधियों का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता है?
  109. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  110. उत्तरमाला

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